Wednesday, October 6, 2010

कोसी अंचल का प्रथम मैथिली कवि : विनयश्री

बौद्धधर्म प्रचारक विनयश्री (बारहवीं शती) का निवास-स्थान पूर्वी मिथिला बताया गया है। यह निर्विवाद रूप से कोसी अंचल ही है। उनका संबंध विक्रमशिला, नालंदा और जगतल्ला के बौद्ध बिहारों से था। मुस्लिमों द्वारा इन विहारों के नष्ट हो जाने के पश्चात् वे अपने गुरु शाक्य-श्रीभद्र और अन्य व्यक्तियों के साथ 1203 ई. में तिब्बत पहुँचे। उस समय उनकी अवस्था 35 वर्षों से कम नहीं थी। उन्होंने शाक्य-श्रीभद्र को अनेक भारतीय ग्रंथों के भोट-भाषा में अनुवाद करने में सहायता की। जगतल्ला-विहार के पंडितों-विभूतिचंद्र, दानशील, सुगतश्री, संघश्री (नैपाली) आदि साथियों के साथ उनके तिब्बत के ‘स. स्क्य-विहार’ में भी रहने का उल्लेख मिलता है। वहीं राहुल सांकृत्यायन को 12-13वीं सदी में लिखित कुछ पृष्ठ मिले, जिनमें विनयश्री के 15 गीत हैं। वे मैथिली भाषा में रचना किया करते थे।

(1)
निमूल तरुवर डाल न पाती।
निभर फुल्लिल्ल पेखु बिआती।।ध्रु.।।1।।
भणइ विनयश्री नोखौ तरुअर। फुल्लए करुणा फलइ अणुत्तर।
करुणामोदें सएलवि तोसए। फल संपतिएँ से भव नाशए।।2।।
से चिन्तामणि जे जइ स बासए। से फल मेलए नहि ए साँसए।
वर गुरुभत्तिएँ चित्त पबोही। तहि फल लेहु अणुत्तरबोही।।3।।
गेल्लिअहुँ गिरिसिहर रिजात्तें। तहिं झंपाविल्लि कलिके अन्ते।।ध्रु.।।
हल कि करमि सहिएँ एकेल्लि। बिसरे राउ लेल्लइ लिसु पेल्ली।
तहिं झंपइ ट्ठेल्लि हेरुअ मेले। बिसअ बिसइल्लि मा छाडिय हेले।
भणइ विनयश्री वरगुरु बएणे। नाह न मेल्लप रे गमणे।।4।।
(2)
राहुएं चांदा गरसिअ जाबें। गरुअ संबेअण हल सहि ताबें।।ध्रु.।।
भणइ विनयश्री नोख बिनाणा। रवि साँजोएँ बान्ह गहणा।
बांद गरसिल्ले आन्न न दिशइ। सपुल बिएक रूअ पडिहारइ।।
साब् गरासिउ आध राती, न तहि इन्दी बिसअ विआती।
कइसो आपु व गहराणा भइल्ला। सम गरासें अथवण गइल्ला।।ध्रु.।।

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