(1)
निमूल तरुवर डाल न पाती।
निभर फुल्लिल्ल पेखु बिआती।।ध्रु.।।1।।
भणइ विनयश्री नोखौ तरुअर। फुल्लए करुणा फलइ अणुत्तर।
करुणामोदें सएलवि तोसए। फल संपतिएँ से भव नाशए।।2।।
से चिन्तामणि जे जइ स बासए। से फल मेलए नहि ए साँसए।
वर गुरुभत्तिएँ चित्त पबोही। तहि फल लेहु अणुत्तरबोही।।3।।
गेल्लिअहुँ गिरिसिहर रिजात्तें। तहिं झंपाविल्लि कलिके अन्ते।।ध्रु.।।
हल कि करमि सहिएँ एकेल्लि। बिसरे राउ लेल्लइ लिसु पेल्ली।
तहिं झंपइ ट्ठेल्लि हेरुअ मेले। बिसअ बिसइल्लि मा छाडिय हेले।
भणइ विनयश्री वरगुरु बएणे। नाह न मेल्लप रे गमणे।।4।।
(2)
राहुएं चांदा गरसिअ जाबें। गरुअ संबेअण हल सहि ताबें।।ध्रु.।।
भणइ विनयश्री नोख बिनाणा। रवि साँजोएँ बान्ह गहणा।
बांद गरसिल्ले आन्न न दिशइ। सपुल बिएक रूअ पडिहारइ।।
साब् गरासिउ आध राती, न तहि इन्दी बिसअ विआती।
कइसो आपु व गहराणा भइल्ला। सम गरासें अथवण गइल्ला।।ध्रु.।।
No comments:
Post a Comment